Thursday, 2 November 2017

Hindi Poetry, Jaagti Aankho hi se

जागती आँखों ही से सोती रहती हूँ,
मैं पलकों में खाव्ब पिरोती रहती हूँ..

तेजाबी बारिश के नक्श नहीं मिटते,
मैं अश्कों से आँगन धोती रहती हूँ..

मैं खुशबू की कद्र नहीं जब कर पाती,
फूलों से शर्मिंदा होती रहती हूँ..

जब से गहराई के खतरे भांप लिए,
बस साहिल पर पाँव भिगोती रहती हूँ ..

मैं भी नुसरत उसके लम्स की गर्मी से,
कतरा कतरा दरिया होती रहती हूँ

– नुसरत मेंहदी

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