तुम क़रीब हो मगर फ़िर भी तुम्हारे बदन से वो मोहब्बत की खूश्बू आती नहीं। इन हवाओं का रूख भी बदल रहा है, लगता है तुम्हें अब सोहबत मेरी भाती नहीं।
~ नीरज कुमार
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