Saturday, 28 March 2020

Famous Dr. Rahat Indori Shayari

राहत इन्दौरी को इन दिनों कौन नहीं जानता | वैसे तो राहत इन्दौरी बहुत ही प्रसिद्ध उर्दू एव हिंदी शायरी, हिंदी कवि और हिंदी सिनेमा जगत के गीतकार भी है| लेकिन इन दिनों ज्यादा ही प्रचलन में है, और इसका कारण उनकी “बुलाती है मगर जाने का नहीं” कविता का ट्रेंड में होना है, इस पोएम को जनता से बहुत ज्यादा प्यार मिला है और ये लेख सोशल मीडिया एप्लीकेशन टिकटोक पर से भी सबसे ज्यादा प्रचलन में आयी है, जिससे अधिक से अधिक लोग डॉक्टर राहत इन्दौरी साहब को जानने लगे है|

राहत इन्दौरी जी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राचार्य भी रहे हैं। इनका जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 को एक मुस्लिम परिवार में हुआ | इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी इंदौर से हुयी लेकिन बाद में इंदौरी जी ने उर्दू साहित्य में ऍमए, भोपाल क्षेत्र से किया तत्पश्चात इन्होने भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि ग्रहण की।

राहत इन्दौरी जी कॉलेज टाइम से ही शायरी का शौक रखते थे और यही शौक इन्हे आज बुलंदियों पे ले गया | तो आईये दोस्तों राहत इन्दौरी जी द्वारा लिखी हुयी कुछ चुनिंदा शेर ओ शायरी हिंदी और उर्दू में जानते है, कुछ फेमस राहत इन्दौरी शायरी और स्टेटस जो प्रचलन में है –

 

Dr. Rahat Indori Shayari

Rahat Indori Attitude Shayari

Dr. Rahat Indori Attitude Shayari in Hindi

 

 

सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें

 


 

जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे
भुलादे मुझको, मगर मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे

 


 

Bulati hai magar jane ka nahi Famous Poetry

 

बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

 

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

 

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं

 

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

 

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं

 

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं

 


 

हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं

 


 

मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो

 


 

जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे

 


 

आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो

 


 

इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

 


 

लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना
में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना

 


 

इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया
जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया

 


 

जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए

 


 

जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से
बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से

 


 

जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं..

 


 

काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं

 


 

गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं

 


 

ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए
ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए

 


 

Rahat Indori Shayari

Dr. Rahat Indori Shayari in Hindi Language

 

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं

 


 

नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे

 


 

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए

 


 

कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं

 


 

अखबार पर शायरी राहत इन्दोरी जी द्वारा

 

इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ
हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ
एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ

 


 

बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा

 


 

पाकिस्तान आँखों में शायरी

 

यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान पढ़ते हैं
यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं

 


 

सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे

 


 

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

 


 

तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

 


 

आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो

 


 

आग के पास कभी मोम को लाकर देखूं
हो इज़ाज़त तो तुझे हाथ लगाकर देखूं
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखूं

 


 

नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं
जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं

 


 

अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की कीमत क्या है
एक ही बर्थ पे दो साये सफर करते रहे
मैंने कल रात यह जाना है कि जन्नत क्या है

 


 

इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए
घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए
साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए

 


 

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था
मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था

 


 

इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ

 


 

राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना
नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर
“राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला भी देना

 


 

फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए
भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए

 


 

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते

 


 

See More – Rahat Indori Special

 


 

 

Famous Rahat Indori Status in Hindi

Rahat Indori Status

Dr. Rahat Indori Status in Hindi

 

फैसला जो कुछ भी हो, मंज़ूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क़ हो भरपूर होना चाहिए

 


 

 

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है

 


 

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

 


 

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

 


 

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

 


 

फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

 


 

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा सिर्फ हमीं से निकलेगा

 


 

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल भी काले पड़ गए

 


 

मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी

 


 

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

 


 

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

 


 

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।

 


 

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेश में वो किससे रजाई मांगे

 


 

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ

 


 

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

 


 

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी में मौत से यारी रखो

 


 

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