गुलाब की तरह हो तुम मां! मेरे मन मंदिर में महकती हो। ज़िंदगी का सार हो तुम मां! तुम्हीं दिल से मुझे समझती हो।
~ जितेंद्र मिश्र ‘बरसाने’
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