हाल अपना सुनाएं हम कैसे उन्हें, वो तो ग़ैरों की महफ़िल में रमे जा रहे। एक नज़र भी ना देखें वो मेरी तरफ़, बेरुखी से हम उनकी मरे जा रहे।।
~ महेश ओझा (Mahesh Ojha)
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