कभी मुख्तसर खुशी कभी इंतहा ए ग़म हूं मैं कभी ज़ख्मों की वजह तो कभी मरहम हूं मैं इतने हिस्सों में बट चुका है किरदार मेरा की आजकल मैं थोड़ा कम हूं मैं ।।
~ निर्मल
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