ख़ुदा करें हालात मेरे इस क़दर न हो
बात मैं करूं तो बात में असर न हो
ग़म है के आलम है मेरे जिंदगानी का
ज़ख़्म आए मुझे पर उसे ख़बर न हो
बात कही जाए पर न जाए लबों से
है यक़ीं के पता उसे कुछ मगर न हो
माना के राह-ए-इश्क़ में कांटें है गिरे
नसीब मुझे ऐ ख़ुदा ऐसी डगर न हो
मरीज़ हूं मैं दिल का, मरीज़ ही रहूं
इलाज के लिए ही कोई चारागर न हो
मैं जानता हूं उसका दिल तो है कांच का
तोड़ना चाहूं तो हाथ में पत्थर न हो
दुनिया से जुड़ा है रंज-ओ-गम का वास्ता
इस दुनिया में दूर तक मेरी नज़र न हो
इक उम्र गुज़ारी है मुहब्बत में ‘ज़ाफ़िर’
मुश्किलें रहें पर इश्क़ का सफ़र न हो
~ Rohan Gangurde
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