वक्त वो दोस्त है जो सिखाता रहा। हंसाता रहा और रुलाता रहा। ठोकरें खाकर ही चलना सीखा है। वक्त ही नयी राह दिखाता रहा।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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