दिल में लगी है आग, बताएं कैसे। गमों का आशियाना, दिखाएं कैसे। बताएं या छुपाए, हार अपनी है। अपने घरों की आग, बुझाएं कैसे।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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