उलझन भरे दिन हैं मेरे, तनहा हैं राते
दे जाती हैं जख्म, मुझे तेरी वो बातें
हम भी बढ़ के थाम लेते तेरा दामन
यूँ तूने हमको अगर रुलाया ना होता
तेरी नजरो के हम भी एक नज़ारे होते
जो तूने अपनी नजरो में हमे बसाया होता
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