Wednesday 30 December 2020

खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं

उड़ा जाता है चांद, छोर मिलता नहीं।
खुशियों का चांद, अब खिलता नहीं।
चांद का रंग रूप, कुछ अलग ढ़ंग का।
अब चांदनी से चांद, कहीं मिलता नहीं।

 

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

 

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