Tuesday 13 June 2017

2 Line Shayari, Na jaane kab kharch ho gaye

न जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला,
वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिये।


बहुत सा पानी छुपाया है मैंने अपनी पलकों में,
जिंदगी लम्बी बहुत है, क्या पता कब प्यास लग जाए।
न हथियार से मिलते हैं न अधिकार से मिलते हैं,
दिलों पर कब्जे बस अपने व्यवहार से मिलते है।
अपने दिल की अदालत में ज़रूर जाएं,
सुना है, वहाँ कभी गलत फैसले नहीं हुआ करते।
कॉल फ्री होने से क्या होता है साहिब,
दिलों में गुंजाइश भी तो होनी चाहिए बात करने के लिए।
घर अपना बना लेते हैं, जो दिल में मेरे,
मुझसे वो परिंदे, कभी उड़ाये नहीं जाते।
इतना क्यों सिखाए जा रही हो ज़िन्दगी,
हमें कौनसी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ।
यहाँ हर कोई रखता है ख़बर ग़ैरों के गुनाहों की,
अजब फितरत हैं, कोई आइना नहीं रखता।
मन को छूकर लौट जाऊँगा किसी दिन,
तुम हवा से पूछते रह जाओगे मेरा पता।

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