मन के अंदर झांक रहा है मन मेरा। मन की भाषा बोल रहा है मन मेरा। मन भावों का एक समुंदर होता है। मन चंचल है घूम रहा है मन मेरा..।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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