गुलाब की तरह ख़ुशमिज़ाज रहो। चमकते-दमकते आफ़ताब रहो। तुम जहां जाओ महफ़िलें लूट ल़ो। सभी के ज़िगर में सरताज़ रहो।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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