Wednesday 6 September 2017

2 Line Shayari, Yu na Chodh

यूँ ना छोड़ जिंदगी की किताब को खुला,
बेवक्त की हवा ना जाने कौन सा पन्ना पलट दे।


जाने लोग मोहब्बत को क्या-क्या नाम देते हैं
हम तो तेरे नाम को ही मोहब्बत कहते हैं।
हम तुम बैठे ही नहीं, इक मुद्दत से संग,
यार गिलासों को कहीं, लग ना जाये ज़ंग।
सुनना चाहते है एक बार आवाज उनकी
मगर बात करने का बहाना भी तो नहीं आता मुझे।
ना आवाज हुई.. ना तमाशा हुआ,
बड़ी ख़ामोशी से टूट गया.. एक भरोसा जो तुझ पर था।
वो मेरा वहम था कि मैँने उसे, अपना हम सफर समझा
वो चलता तो मेरे साथ था पर किसी और की तलाश मे।
फ़ासला भी ज़रूरी था.. चिराग़ रौशन करते वक़्त
ये तज़ुर्बा हासिल हुआ.. हाथ जल जाने के बाद।
जितने दिन तक जी गई, बस उतनी ही है जिन्दगी,
मिट्टी के गुल्लकों की कोई उम्र नहीं होती।
अभी तो साथ चलना है समंदर की मुसाफत में
किनारे पर ही देखेंगे किनारा कौन करता है।
मुर्शिद की याद आई है, सांसों ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में खलल पडता है।

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