बड़ी अजीब है ये मोहब्बत..
वरना अभी उम्र ही क्या थी शायरी करने की।
कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहें हैं,
बहुत दिनों से ख़ुशी को तरस रहें हैं।
तेरा आधे मन से मुझको मिलने आना,
खुदा कसम मुझे पूरा तोड़ देता है।
धड़कनो मे बस्ते है कुछ लोग,
जबान पे नाम लाना जरूरी नही होता।
उसकी याद आयी है सांसो जरा अहिस्ता चलो,
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है।
मेरी रूह गुलाम हो गई है तेरे इश्क़ में शायद,
वरना यूँ छटपटाना मेरी आदत तो ना थी।
शर्म नहीं आती उदासी को जरा भी,
मुद्दतों से मेरे घर की महेमान बनी हुई है।
मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है,
तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद है।
काश.. बनाने वाले ने थोड़ी-सी होशियारी और दिखाई होती,
इंसान थोड़े कम और इंसानियत ज्यादा बनाई होती।
रोता वही है जिसने महसूस किया हो सच्चे रिश्ते को,
वरना मतलब के रिश्तें रखने वाले को तो कोई भी नही रूला सकता।
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