Wednesday, 2 May 2018

2 Line Shayari #210, Do mulakat kya hui

​दो मुलाक़ात क्या हुई हमारी तुम्हारी,
​निगरानी मे सारा शहर लग गया।

क़ैद ख़ानें हैं बिन सलाख़ों के,
कुछ यूँ चर्चें हैं तुम्हारी आँखों के।

फर्क नहीं पडता दुश्मन कि संख्या कितनी है,
जीत तो अपने बुलंद हौसलों से होती है

फर्क नहीं पडता दुश्मन कि संख्या कितनी है,
जीत तो अपने बुलंद हौसलों से होती है।

​तेरी यादों की खुशबू से, हम महकते रहतें हैं
​जब जब तुझको सोचते हैं, बहकते रहतें हैं। 💞🍃

​तेरी यादों की खुशबू से, हम महकते रहतें हैं!
​जब जब तुझको सोचते हैं, बहकते रहतें हैं। 🍃💞

बहुत ऊंचा कलाकार हूँ जिंदगी के रंगमंच का..
साहब.. मजाल है देखने वालों को मेरा दर्द दिख जाए।

रूठने का क्या फ़ायदा सुलह कर लो
खामियां उसमें भी हैं खामियां तुममे भी बहोत हैं।

बारात निकली हैं आज जज़्बातों की मेरे
देखते हैं, पैगाम-ए-दिल दिलदार तक कब पहुँचता हैं।

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं,
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं।

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