Monday, 14 May 2018

2 Line Shayari #212, Kuch Zakhm ese hai

कुछ जख्म ऐसे हैं कि दिखते नहीं,
मगर ये मत समझिये कि दुखते नहीं। 😔

घर में रहा था कौन कि रुखसत करे हमें,
चौखट को अलविदा कहा और चल पड़े।

खरीद पाऊँ खुशियाँ उदास चेहरों के लिए,
मेरे किरदार का मोल इतना करदे खुदा।

ग़म-ए-हयात ने बख़्शे हैं सारे सन्नाटे,
कभी हमारे भी पहलू में दिल धड़कता था। 😔

जी रहे हैं तेरी शर्तो के मुताबिक़-ऐ-जिन्दगी,
दौर आएगा कभी हमारी फरमाइशो का भी।

हमें तुमसे मिलने के लिये मीलों का नही,
सिर्फ पलकों का फासला तय करना पड़ता है।

भंवरों को मत दीजिये इतनी ज़्यादा छूट,
वरना कलियाँ शाख़ से खुद जायेंगी टूट।

कर दी ना बर्बाद फिर अच्छी खासी शाम,
कमज़र्फों के हाथ में और दीजिये जाम।

मुसाफ़िर इश्क का हुँ मैं मेरी मंजिल मोहब्बत है,
तेरे दिल मे ठहर जाउँ अगर तेरी इजाजत है।

हमारा भी ख़याल कीजिये कहीं मर ही ना जाए हम,
बहुत जहरीली हो चुकी है अब खामोशियाँ तुम्हारी।

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