खुद को समेट के, खुद में सिमट जाते हैं हम,
एक याद उसकी आती है फिर से बिखर जाते है हम।
जो दिल के आईने में हो, वही है प्यार के क़ाबिल,
वरना दीवार के क़ाबिल तो हर तस्वीर होती है।
साफ़ दामन का दौर तो कब का खत्म हुआ साहब,
अब तो लोग अपने धब्बों पर गुरूर करने लगे हैं।
ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम,
रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है।
एक बात बोलूँ बड़ी बरकत है तेरे ईश्क में,
जब से हुआ है बढ़ता ही ज़ा रहा है।
किस कदर अजीब है ये सिलसिला-ए-इश्क़,
मोहब्बत तो कायम रहती है पर इन्सान टूट जाते है।
एक चाहत होती है, जनाब़ अपनों के साथ जीने की,
वरना पता तो हमें भी है कि ऊपर अकेले ही जाना है।
लगता है आँखों से अश्क़ों की तरह बरसते रहेंगे हम,
ताउम्र प्यार के लिए इसी तरह तरसते रहेंगे हम।
चैन तुमसे है करार तुमसे है जिंदगी की बहार तुमसे है,
क्या करुंगा पूरी दुनिया को लेकर मेरे दिल को तो बस प्यार तुमसे है।
माना की खुद चलकर आए है हम तेरे दर पर ऐ मोहब्बत,
लेकिन दर्द, दर्द और सिर्फ दर्द ये कहाँ की मेहमान नवाजी है।
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