Tuesday 1 September 2020

ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया

ज़िंदगी का कारवां यूं ही चलता गया
कोई हमदर्द और कोई ख़ुदगर्ज़ मिलता गया।
कभी ख़ुशियाँ थीं तो कभी दुख की बरसात हुई
बचपन से ज़वानी और फ़िर बुढ़ापे का सफ़र बढ़ता गया।।

~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’

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