Thursday 3 September 2020

ख्वाहिशों की उम्मीद में फिर से जीना सीख गई

 

ख्वाहिशे आज फिर मुझसे रूठ गई
तनहा रातों में आज फिर आंसु बनकर बह गई

कुछ था जो वो मेरे कानों में आकर कह गई
की ये तो वक्त की कुछ साजिशें थी, जिसमें तु फिर से उलझ गई

वो क्या रूठी मुझे लगा मेरी जिंदगी ही रूठ गई
पर फिर उस सुलगती शाम में फिर अनगिनत ख्वाहिशें बुन गई

जब ख्वाहिशें मुझ से रूठी तो उस से घायल तो जरूर हुई
पर उसी ख्वाहिशों की उम्मीद में फिर से जीना भी सीख गई।

 

~ Rinku patel

 

The post ख्वाहिशों की उम्मीद में फिर से जीना सीख गई appeared first on Shayari.

No comments:

Post a Comment