शिकवें आँखों से आँसू बन के गिर पड़े,
वरना होठों से शिकायत कब की मैंने।
माना की बड़ा ही खुबसूरत हुस्न है तेरा,
लेकिन दिल भी होता तो क्या बात होती।
यूँ कफ़न उठाते हो रुख से बार बार,
क्या करोगी मेरा जला हुआ दिल लेकर।
वो एक रात जला तो उसे चिराग कह दिया,
हम बरसो से जल रहे है, कोई तो खिताब दो।
क्यूं बोझ हो जाते है वो झुके हुए कंधे साहब,
जिन पर चढ़कर तुम कभी मेला देखा करते थे।
हिसाब किताब हमसे ना पूछ अब, ऐ ज़िन्दगी..
तूने सितम नहीं गिने, तो हमने भी ज़ख्म नहीं गिने।
हासिल कर के तो हर कोई मोहब्बत कर सकता है,
बिना हासिल किए किसी को चाहना.. कोई हम से पूछे।
हमारे शहर मै फूलो कि कोई दूकान नही,
बस एक आपके मुस्कुराने से काम चलता है।
शीशा और पत्थर संग संग रहें तो बात नहीं घबराने की,
शर्त इतनी है कि दोनों ज़िद न करें टकराने की।
एक चाहत होती है, जनाब़.. अपनों के साथ जीने की,
वरना पता तो हमें भी है कि.. ऊपर अकेले ही जाना है।
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