Friday, 27 April 2018

2 Line Shayari #208, Dorh dorh ke khud ko

दौड़-दौड़ के खुद को पकड़ के लाता हूँ,
तुम्हारे इश्क ने बच्चा बना दिया है मुझे।

दुसरों की शर्तों से सुल्तान बनने से अच्छा,
खुद की खुशी से फकी़र बनना ज्यादा बेहतर है।

घर का दरवाजा इस अंदाज से खोला उसने,
कि जैसे मैं नहीं कोई और था आने वाला।

लोग औरत को फकत जिस्म समझ लेते हैं,
रूह भी होती है इसमें, ये कहाँ सोचते हैं।

रास्ते कहाँ खत्म होते हैं ज़िन्दगी के सफर में..
मंजिल तो वही हैं जहाँ ख्वाइशै थम जायें।

घर का दरवाजा इस अंदाज से खोला उसने,
कि जैसे मैं नहीं कोई और था आने वाला।

बुरा वक्त पूछ के नहीं आता दोस्तो,
कई बार जज को भी वकील करने पड़ जाते है।

अभी तो देखना बाकी बहुत कुछ हैं सियासत में,
चुनावी दौर हैं कितने जनाज़े ये उठाएगी।

अब और नही होती शायरी हमसे,
सुनो, भाड मे जाओ तुम जिसकी होना हो जाओ।

बूँद बूँद को तरस रही है हमारी सरज़मीं कहने को तो,
हम उस देश के वाशी हैं जिस देश में गंगा बहती है।

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