मैं हवाओं की तरफ़ पीठ किए बैठा हूँ,
कम से कम रेत से आँखें तो बचेंगी।
तू इस कदर मुझे अपने करीब लगता है,
तुझे अलग से जो सोचूँ, तो अजीब लगता है।
मुझे फ़ुरसत ही कहाँ मौसम सुहाना देखूं,
मैं तेरी याद से निकलूं तो ज़माना देखूं।
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो।
उलझते सुलझते हुए जिंदगी के हर पल और,
खुश्बू बिखेरता हुआ तेरा खुश्बुदार सा ख्याल।
हर राह पर तुम्हें तलाश करती रही निगाहें,
काश यादों से निकल कर तुम रूबरू हो जाते।
बढती उम्र में इश्क हो तो अचरज नहीं साहिब,
ये जिंदगी फिर से मुस्कुराने की जिद में है।
हमारी खामोशी को हमारी हार मत समझना,
हम कुछ फैसले ऊपर वाले पर छोड़ देते हैं।
मैं मौत माँगता हूँ खुदा से, तो क्या गलत करता हूँ,
कत्ल तो मेरा हर रोज मेरे, अपने ही कर जाते हैं।
साफ़ मुकर जाने का क़ातिल ने क्या ख़ूब ढंग निकाला है,
हर एक से पूछता है, अरे इसको किसने मार डाला है।
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