तरस जाओगे हमारे लबों से सुनने को एक लफ्ज भी,
प्यार की बात तो क्या हम शिकायत तक नहीं करेंगे।
बेशक नजरों से दूर हो,
पर तुम मेरे सबसे करीब हो।
ज़िक्र बेवफाओँ का था रात सर-ए-महफ़िल मे,
झुका मेरा भी सिर जब मेरे यार का नाम आया।
मैं तो अपने ही जज्बातों में खोई थी,
एहसास ही नहीं हुआ कि कब तुम मेरी एहसास बन गये।
कितनी बन्दिशें कितनी हदें कितनी रस्मों,
को तोड़ा है.. मेने इक तुमसे जुड़े रहने के लिए।
ज़िस्म-ए-दामन में पहले ही दर्द कम ना थे,
कुछ और मुनाफ़ा कर गए जो हमदर्द थे।
ना मैं गिरा ना ही मेरे हौंसलौं के मिनार गिरे,
कुछ लोग मुझको गिराने मैं बार बार गिरे।
ना रुकी वक़्त की गर्दिश ना ज़माना बदला,
वक़्त बदला तो परिंदों ने ठिकाना बदला।
किस हक से कहूँ कि मुझसे बात कर लिया करो,
ना ही ये वक्त मेरा है और ना ही अब तुम मेरी रही।
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा,
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
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