चाँद भी झाँकता है खिड़कियों से,
मेरी तन्हाईयों की चर्चा अब आसमानों में है।
वहाँ मोहब्बत में पनाह मिले भी तो कैसे,
जहाँ मोहब्बत बे पनाह हो।
किसी ने मुझसे पूछा ज़िन्दगी कैसे बर्बाद हुई,
मैंने ऊँगली उठायी और मोबाइल पर रख दी।
अश्कों से भीगे पन्ने पर यूँ लफ्ज़ सिमटते गए,
दर्द से बेहाल कलम और ज़ज़्बात पिघलते गए।
मै अपनी दोस्ती को शहर में रुसवा नहीं करता,
मोहब्बत मैं भी करता हु मगर चरचा नहीं करता।
माली चाहे कितना भी चौकन्ना हो,
फूल और तितली में रिश्ता हो जाता है।
यूँ ही गुजर जाती है शाम अंजुमन में,
कुछ तेरी आँखों के बहाने कुछ तेरी बातो के बहाने।
न मिल रहे हो.. न खो रहे हो तुम,
दिन-ब-दिन बेहद दिलचस्प हो रहे हो तुम।
मोहब्बत मे कभी कोई जबरदस्ती नही होती,
जब तुम्हारा जी चाहे तुम बस मेरे हो जाना।
अजीब सी आदत, गज़ब की फितरत है मेरी,
नफ़रत हो या मोहब्बत बड़ी शिद्दत से करता हूं।
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