Thursday 2 November 2017

Hindi Poetry, Chori kahi khule na

चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की,
ख़ुश-बू उड़ा के लाई है गेसू-ए-यार की,
अल्लाह रक्खे उस का सलामत ग़ुरूर-ए-हुस्न,
आँखों को जिस ने दी है सज़ा इंतिज़ार की,
गुलशन में देख कर मिरे मस्त-ए-शबाब को,
शरमाई जारी है जवानी बहार की,
ऐ मेरे दिल के चैन मिरे दिल की रौशनी,
आ और सुब्ह कर दे शब-ए-इंतिज़ार की,
जुरअत तो देखिएगा नसीम-ए-बहार की,
ये भी बलाएँ लेने लगी ज़ुल्फ़-ए-यार की,
ऐ ‘हश्र’ देखना तो ये है चौदहवीं का चाँद,
या आसमाँ के हाथ में तस्वीर यार की।

~ आग़ा हश्र काश्मीरी

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