Saturday 11 November 2017

Hindi Poetry, Mere dudh ka karz

मेरे दूध का कर्ज़

मेरे दूध का कर्ज़ मेरे ही खून से चुकाते हो,
कुछ इस तरह तुम अपना पौरुष दिखाते हो,
दूध पीकर मेरा तुम इस दूध को ही लजाते हो,
वाह रे पौरुष तेरा तुम खुद को पुरुष कहाते हो,
हर वक्त मेरे सीने पर नज़र तुम जमाते हो,
इस सीने में छुपी ममता क्यों देख नहीं पाते हो,
इक औरत ने जन्मा, पाला-पोसा है तुम्हें,
बड़े होकर ये बात क्यों भूल जाते हो,
तेरे हर एक आँसू पर हज़ार खुशियाँ कुर्बान कर देती हूँ मैं,
क्यों तुम मेरे हजार आँसू भी नहीं देख पाते हो,
हवस की खातिर आदमी होकर क्यों नर पिशाच बन जाते हो,
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो,
हमें मर्यादा सिखाने वालों तुम अपनी मर्यादा क्यों भूल जाते हो।

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