Thursday 2 November 2017

Hindi Poetry, Sakht Dhoop me

सख्त़ धूप में जब मेरा सफ़र हो गया,
कच्ची मिट्टी सा था, मैं पत्थर हो गया..

चोट सहने का हुनर भी सीखा मैंने,
ख़ुद को तराशा तो मैं संगमरमर हो गया..

ऐ ठोकरों सुनो, तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ मैं,
गिरते सँभालते मैं भी रहबर हो गया..

एक तू मिल गया तो कई गुना सा हूँ,
एक तू नहीं तो मैं तन्हा सिफ़र हो गया..

शहर में मैंने जब घर ख़रीद लिया,
अपना सा ये सारा शहर हो गया..

आज माँ को फ़िर हंसाया मैंने,
नूर ही नूर मेरा सारा घर हो गया..

क़त्ल आज मैंने अपना माफ़ किया,
अपने क़ातिल पर मैं ज़बर हो गया

तेरे दुश्मन की दाद तुझे हासिल है,
कामिल ‘फ़राज़’ तेरा हुनर हो गया।

~ फ़राज़

तराशा= Chiselled
शुक्रगुज़ार=Thankful.Grateful.
रहबर= Guide,
सिफ़र= Zero.Naught.
नूर=Light, Splendour.
क़त्ल= Murder.
क़ातिल= Murderer.
ज़बर= Superior, Greater
दाद= Words of praise.
कामिल= Perfect, Complete, Accomplished, Entire.

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