Friday 27 April 2018

2 Line Shayari #207, Gardish to chahti thi tabahi

गर्दिश तो चाहती है तबाही मेरी मगर,
मजबूर है किसी की दुआओं के सामने।

काश एक ख़्वाहिश पूरी हो इबादत के बगैर,
वो आके गले लगा ले मेरी इज़ाजत के बगैर।

मिली हैं रूहें तो, रस्मों की बंदिशें क्या हैं,
यह जिस्म तो ख़ाक हो जाना है, फिर रंजिशें क्या है।

करनी हो पहचान अगर गमगीन शख्स की..
दोस्तों गौर से देखना वो मुस्कुराते बहुत है।

शायरी के शौक़ ने इतना तो काम कर दिया,
जो नहीं जानते थे उनमें भी बदनाम कर दिया।

महफ़िल में चल रही थी हमारे कत्ल की तैयारी,
हम पहुँचे, तो बोलें बहुत लम्बी उम्र है तुम्हारी।

जो दिखाई देता वो हमेशा सच नहीं होता..
कही धोखे में आँखे है तो कही आँखों में धोखा है!

चेहरे अजनबी हो जाये तो कोई बात नही,
लेकिन रवैये अजनबी हो जाये तो बडी तकलीफ देते हैं।

दीवारें छोटी होती थी,‬ फ़क़त एक पर्दा होता था,
‪ताले की ईजाद से पहले सिर्फ भरोसा होता था।

एक तिल का पहरा भी जरूरी है लबो के आसपास,
मुझे डर है कहीं तेरी मुस्कुराहट को कोई नज़र न लगा दे।

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