इक समंदर सा नशा है तेरी. मोहब्बत का
उभरता हूँ उभर के फिर से डूब जाता हूँ।
इश्क़, मोहब्बत, प्यार, इबादत सब कहने की बाते है,
चाहिए अगर सुकून ज़िन्दगी में, तो इनसे दूरी रखिये।
खव्वाहिश तो न थी किसी से दिल लगाने की पर,
किस्मत में दर्द लिखा है मोहब्बत कैसे न होती।
हर फूल खुशबुदार नहीं होता,
हर दोस्त वफादार नहीं होता,
नजरों से नजरें मिलती है अक्सर,
हर नजर का मतलब प्यार नहीं होता।
क़यामत है तेरा यूँ बन सँवर के आना,
हमारी छोड़ो, आईने पे क्या गुज़रती होगी।
होने को है मुकम्मल फिर एक ग़ज़ल दिल में,
तुम यूँ ही बने रहना, कुछ देर तसव्वुर में।
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