न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
तेरा ज़िन्दगी में आना इत्तफाक हो तो हो,
पर तुझे यूं ज़िन्दगी बनाना इत्तफाक नहीं।
दुआ कहूँ, अर्ज़ी कहूँ या ख़्वाहिश कहूँ इसे,
रब्ब साँसें उतनी दे जितना साथ तुम्हारा दे।
गहरी हो जाती है हर दफ़ा मुहब्बत मेरी
जाया नहीं जाता तेरा बार बार रूठना।
“हुस्न” में “नाज़” था, “नज़ाकत” थी,
“इश्क़” में “एहसास” था, “शराफ़त” थी।
एक अरमां, मेरे दिल में, दबी हुई है अब तक,
दो लफ़्ज़ उनके लब पे, रुकी हुई है अब तक,
ना मेरे अरमां पूरे हुये अब तक..
ना उनके लफ़्ज़ खुले है अब तक।
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