ज़ार-ज़ार रोई आँखें ठहर गई दिल की धड़कन,
मेरे अपनों में मेरी औकात का मंज़र देखकर।
ऐ ज़िन्दगी बार बार न रुलाया कर..
हर किसी के पास चुप कराने वाला नहीं होता।
खव्वाहिश तो न थी किसी से दिल लगाने की पर,
किस्मत में दर्द लिखा है मोहब्बत कैसे न होती।
बात वफाओं की होती तो कभी न हारते,
बात नसीब की थी कुछ कर न सके।
वोह कहते है पत्थर दिल रोया नहीं करते,
उन्हें क्या खबर पानी के चश्मे पत्थरों से निकलते है।
तेरी जिद से तंग होकर इस्तीफा देने चला है ये दिल,
कोई इसे समझाओ की इश्क़ में फिर से चुनाव नहीं होते।
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