टूट के चाहना और फिर टूट जाना सुनो..
बात छोटी सी है मगर जान निकल जाती है।
कोशिश तो रोज़ करते हैं के वक़्त से समझौता कर लें,
कम्बख़्त दिल के कोने में छुपी उम्मीद मानती ही नहीं।
ख्यालों में बुना करते हैं हम,
तेरे साथ मोहब्बत का ताना बाना,
सुकून सा दे जाता है..
इस वीरान दिल में तेरा आना-जाना।
वफ़ा और मोहब्बतों के ज़माने गये जनाब,
अब तो दिल को बहलाने का सामान है मोहब्बत।
गर रब पूछे.. तेरी हसरत क्या हैं.. तो कहेंगे
क़रार उसे भी न मिले.. जो हमें बेक़रार करके गया।
मैं तो बस एक मामूली सा सवाल हूँ साहिब
और लोग कहते हैं.. तेरा कोई जवाब नहीं।
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