Friday 27 October 2017

Hindi Poetry, Khushiyan kam

खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखो परेशान बहुत है..
करीब से देखा तो निकला रेत का घर,
मगर दूर से इसकी शान बहुत है..
कहते हैं सच का कोई मुकाबला नहीं,
मगर आज झूठ की पहचान बहुत है..
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं।।

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